वामनंदन वंदना प्रभु!…

(राग : गिरुअा रे…/ए मेरे प्यारे वतन…/दिल दिया है जान भी देंगे…)

वामनंदन वंदना, प्रभु! चरणोमां अवधारो रे;
करुणा करी करुणानिधि, मने भवसायरथी तारो रे… करुणा0।।1।।

एक समय संसारमां, अापणे साथे रमिया रे;
तुमे निर्मोही थई गया, अमे भव अटवीमां भमिया रे… करुणा0।।2।।

दु:खडा नरक निगोदना, कहेता न अावे पार रे;
छेदन भेदन बहु सह्यां, वली परमाधामीना मार रे… करुणा0।।3।।

परिणति तीव्र कषायनी, भटकावे लाख चोरासी रे;
नाना जन्म धरावी, नांखे गलामां फांसी रे… करुणा0।।4।।

अवर नहि कोई विश्वमां, तुज विण तारणहार रे;
एम जामीने हुं अावीयो, स्वामी! तुम दरबार रे… करुणा0।।5।।

प्रीत पुरातन दाखवो, निज गुण अापो नाथ रे;
हुं भव-कादवमां खूंच्यो, उगारो झाली हाथ रे… करुणा0।।6।।

धन दोलत मागुं नहि, छे मुज ए अरदास रे;
त्रिभुवन तारक बोलावजो, ‘रुपविजय’ तुम पास रे… करुणा0।।7।।

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