गडबड तज गाेडी गुणी, आणी अति उच्छरंग
गडबड तज गाेडी गुणी, आणी अति उच्छरंग |
ध्याता ध्येये ध्यानसु, अधिके ऋद्ध्री उच्छरंग ||१||
ताे अतिउच्छरंग निर्मल गंग कीर्ति चंग,
शुभ सारद सांग क्रान्ति इकांग भरकत रंग ससंग |
फणी सहसा रंग मुकुट समंग सम सुसांग सिद्धांत |
महामाेहमातंग पापप्रसंग हर हर नाथ दुःखांग ||१||
सुकृत शुभ सार प्रगटमपार दर्श दीदार सुखकार,
विषव्याधी विकार नेक पयार परम कृपार संसार |
तारक मुझ तार अहीप उद्धार बिरुदवतार सुसार |
करुं करुं सुखसार, सर्व प्रकार नाथ निरंजन जयकार ||२||
जग जश परसिद्ध सकल समिद्ध किरणसणीद्ध नवनीद्र,
जिन नामे लीद्र शरण सुकीद्ध कार्य सुसुद्ध सानिद्ध |
वयणामुत पीद्ध लहि जणरिद्ध परमपुनीद्र संसिद्र,
तुह पडिया हिठ्ठ सिठ्ठ तुठ्ठ संदीठ्ठ |
नहि अरति अरीठ्ठ धम्मधनीठ्ठ झाणजगिठ्ठ उक्किठ्ठ |
मनमाेहन मिठ्ठ सयल सुरिठ्ठ कमठ कनिठ्ठ नवि धिठ्ठ ||४||
आहाेरे राजे गुणमणी जिन भक्ति मंजूषा गाजे सयल समाजे जिनगाडी,
भवि भावे भेटाे अमंगल मेटाे दुरगति दाेहत अध ताेडी |
सुर असुर खगेसर नमत नरेसर अंध्री जिनेसर सुखकारी,
” सूरिश राजेन्दाे” दमिशमिईन्दाे हर दुःखफन्दाे ध्रमधारी || ५ ||
Leave a comment