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परिचय

अनन्तज्ञानी शास्त्रकार भगवन्तों ने बतलाया है कि, तीर्थंकर की आत्माएँ भी अनादिकाल से अव्यवहारराशि वनस्पति (निगोद) में रहने के बाद…
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पार्श्वप्रभु का प्रथम भव मरुभूति और कमठ

भरतक्षेत्र में पोतनपुर नामक नगर था। वहाँ राजा अरविन्द राज्य करता था। विश्वभूति नामका उसका पुरोहित था, तथा पुरोहित की…
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दूसरा भव हाथी और कुर्कट सर्प

मरुभूति मृत्यु प्राप्त कर जंगल में हाथी बना। कमठ का यह अत्याचार देखकर सभी तापस उसकी निन्दा करने लगे। अतः…
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तीसरा भव देव और नारक

मरुभूति का जीव हाथी मरकर आठवें देवलोक में देव हुआ और कमठ का जीव मरकर पाँचवीं नरक में गया। एक…
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चौथा भव किरणवेग और कालदारुण सर्प

देवलोक का आयुष्य पूर्ण होने पर मरुभूति का जीव महाविदेह क्षेत्र के सुकच्छ विजय में स्थित वैताढ्य पर्वत की तिलकपुरी…
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पाँचवां भव देव और नारक

मरुभूति का जीव किरणवेग मुनि शुभध्यान में मृत्यु प्राप्त कर बारहवें देवलोक में देव बना और सर्प मरकर नरक में…
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छट्ठा भव वज्रनाभ राजा और कुरंगक भील

बारहवें देवलोक का आयुष्य पूर्ण होने के बाद मरुभूति का जीव पश्चिम महाविदेह की सुगंधि विजय में स्थित शुभंकरा नगरी…
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सातवाँ भव ग्रैवेयक देव और सातवीं पृथ्वी में नारक

मरुभूति का जीव वज्रनाभ राजर्षि कालधर्म प्राप्त कर मध्य ग्रैवेयक देवलोक में देव हुए और भील मरकर सातवीं नरक में…
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आठवाँ भव सुवर्णबाहु चक्रवर्ती और सिंह

ग्रैवेयक देवलोक में आयुष्य पूर्ण होने पर मरुभूति का जीव पूर्व महाविदेह में सुरपुर गाँव में वज्रबाहु राजा की पत्नी…
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सुवर्णबाहु की दीक्षा

एकबार सुरपुर नगर के बाहर जगन्नाथ तीर्थंकर परमात्मा पधारे थे। वहाँ सुवर्णबाहु समवसरण में देशना सुनने गए। परमात्मा की वाणी…