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परिचय

अनन्तज्ञानी शास्त्रकार भगवन्तों ने बतलाया है कि, तीर्थंकर की आत्माएँ भी अनादिकाल से अव्यवहारराशि वनस्पति (निगोद) में रहने के बाद वहाँ से कोई आत्मा जब मोक्ष में जाती है, उस वख्त भवितव्यता के कारण वहाँ से निकलकर व्यवहारराशि में आती है। उसके बाद भवभ्रमण करते हुए जब सम्यक्त्व को प्राप्त करती है, तब उसके भवों की गणना होती है। अतः पार्श्वप्रभु के दस भव हुए हैं। उन दस भवों की जीवनयात्रा के बारे में जानने के बाद हमें भी जीवन जीने की व समता समाधि रखने की प्रेरणा मिलती है। जैसे-जैसे हम पार्श्वप्रभुु की जीवनयात्रा में गोते लगाते जाएँगे, वैसे-वैसे उनके विशिष्ट गुणों का परिचय होता जाएँगा। उन गुणों का परिचय होने से उनके प्रति अनुपम आदरभाव, अहोभाव, आवश्यकभाव उत्पन्न होगा और उन गुणों से हमारी आत्मा भावित होती जाएँगी। इस तरह उनके प्रति निष्काम भक्ति प्रगट होगी।

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