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मेघमाली का उपसर्ग और सम्यग्दर्शन

वहाँ से विहार कर प्रभु एक वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हुए। कमठ का जीव मेघमाली देव बनकर अपने पूर्वभव के द्वेषभाव को विभंग ज्ञान से जानकर क्रोधित हो गया। केसरी सिंह, हाथी, सर्प, वैताल आदि अनेक प्रकार के उपसर्ग करने लगा, परन्तु प्रभु अडिग रहे। आखिर थककर मूसलाधार वर्षा कर चारों ओर जलप्रलय सा कर दिया। प्रभु की नासिका तक पानी आ गया, परन्तु प्रभु निश्चल रहे।
अवधिज्ञान से प्रभु के दर्शन कर धरणेन्द्र एक क्षण का भी विलम्ब किए बिना प्रभु भक्ति की भावना से पद्मावती के साथ वहाँ आया। उपद्रव दूर कर मेघमाली को धमकाया, समझाया, मेघमाली को गहरा पश्चात्ताप हुआ और उसने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया।
प्रभु की स्तुति कर और उनसे क्षमा माँगकर वह अपने स्थान पर गया। उसके बाद उसकी द्वेष की परम्परा समाप्त हो गई।
केवलज्ञान : प्रभु विहार करते हुए दीक्षा 84 दिनों के बाद काशी नगर के बाहर घातकी वृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के दिन अट्ठम तप किए हुए काउसग्ग ध्यान में खड़े थे। वहीं क्षपक श्रेणी पर चढ़कर शुक्लध्यान से 4 घातिकर्म का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया।
प्रभु अष्टमहाप्रतिहार्य से युक्त बने। समवसरण की रचना हुई। अश्वसेन राजा, वामादेवी, प्रभावती आदि वहाँ आए। वहाँ देशना सुनकर वैराग्य भावना में आने के कारणे राजा, रानी और प्रभावती आदि ने भी दीक्षा ग्रहण की। प्रभु के शुभ आदि दश गणधर बने। पार्श्वयक्ष तथा पद्मावती अधिष्ठायक देव-देवी बने। पार्श्वप्रभु ने शासन की स्थापना की। पार्श्वप्रभु के परिवार में 16,000 साधु, 38,000 साध्वीजी, एक हजार केवली, 1,64,000 श्रावक तथा 3,77,000 श्राविकाएँ थीं।
मोक्ष : उसके बाद प्रभु ने सम्मेतशिखरजी की ओर विहार किया। वहाँ पहाड़ के ऊपर 33 मुनियों के साथ एक महीने का अनशन किया। 100 वर्ष की आयु पूर्ण कर पार्श्वप्रभु ने अन्य मुनियों के साथ श्रावण शुक्ल अष्टमी के दिन खड़े-खड़े काउसग्ग मुद्रा में मोक्ष को प्राप्त किया। वह दिन प्रभु का निर्वाण कल्याणक कहलाता है।
हम भी प्रभु पार्श्वनाथ की आराधना कर मोक्ष प्राप्त करें। ऐसी शुभ भावना सतत रखें।

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