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दूसरा भव हाथी और कुर्कट सर्प

मरुभूति मृत्यु प्राप्त कर जंगल में हाथी बना। कमठ का यह अत्याचार देखकर सभी तापस उसकी निन्दा करने लगे। अतः अशुभ भाव में मरकर कमठ कुर्कट सर्प बना। एक दिन सन्ध्याकाल आकाश में रंग-बिरंगे बादलों को देखते हुए अनित्य भावना की तीव्रता के कारण अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर राजा अरविन्द ने प. पू. समन्तभद्राचार्यश्री के पास दीक्षा ग्रहण कर ली और मुनि बनकर विचरण करने लगे।
संयम का विशिष्ट पालन करते हुए अरविन्द मुनि को अवधिज्ञान हुआ। उन्होंने जंगल में मरुभूति के जीव हाथी से अन्य जीवों को परेशान होते हुए देखा। अतः वे उसे प्रतिबोध देने वहाँ गए। हाथी अरविन्दमुनि को मारने दौड़ा, परन्तु मुनि ने आशीर्वाद मुद्रा में कहा ‘‘बुज्झ बुज्झ मरुभूइ बुज्झ…’’ अरे ! मरुभूति बोध प्राप्त कर, शान्त हो जाओ। ‘अरे ! तूं तो कैसा विवेकी और क्षमावान था, निरपराध होते हुए भी एक अपराधी से क्षमा माँगने गया और मरते समय आर्तध्यान होने के कारण हाथी बन गया।’ इन वचनों को सुनकर हाथी आश्चर्यचकित हो गया, उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। उसके हृदय में शुभ भाव उत्पन्न हुए। उसने पूर्व जन्म में पुण्य उपार्जन किया था, अतः इस तिर्यंच भव में भी अरविन्द मुनि का संयोग मिल गया और उसने प्रतिबोध प्राप्त किया।
अशुभ भाव में मरकर कमठ का जीव वैर की गाँठ लेकर कुर्कुट सर्प के भव में आया है। अतः जंगल में हाथी को देखते ही पूर्व भव में वैर के अनुबंध स्वरुप द्वेष के संस्कार से उसका क्रोध भड़क उठा। उस जहरीले कुर्कुट सर्प ने हाथी को ड़ंस लिया। हाथी के सारे शरीर में विष फैल गया, परन्तु वह समता भाव रखते हुए शुभ भाव में स्थिर रहा। उसने सर्प के ऊपर बिल्कुल कषाय नहीं किया।

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