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आठवाँ भव सुवर्णबाहु चक्रवर्ती और सिंह

ग्रैवेयक देवलोक में आयुष्य पूर्ण होने पर मरुभूति का जीव पूर्व महाविदेह में सुरपुर गाँव में वज्रबाहु राजा की पत्नी सुदर्शना की कुक्षि में पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। तब सुदर्शना ने रात्रि में चौदह महास्वप्न देंखे। उसका पुत्र चक्रवर्ती होगा, ऐसा स्वप्न पाठकों ने बतलाया। यह सुनकर सुदर्शना अत्यन्त आनन्दित हुई। युवावस्था प्राप्त होने पर वज्रबाहु का राज्याभिषेक कर राजा-रानी ने चारित्रधर्म स्वीकार किया और क्रमशः केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गए।
एक दिन सुवर्णबाहु राजा सैनिकों के साथ अश्वशाला में गए। वहाँ उसने पवनवेगी अश्व को देखा, जो दिखने में बहुत सुन्दर था। राजा की इच्छा उसके ऊपर सवारी करने की हुई। देखते-देखते वह अश्व पर सवार हो गया। यह देखकर सभी प्रसन्न हो गए, किन्तु थोड़ी ही देर में उन्हें आश्चर्य हुआ कि घोड़ा आकाश में उड़ने लगा। सेनापति और सैनिक शोर मचाने लगे ‘अपहरण-अपहरण’। परन्तु कोई सूननेवाला नहीं था। घोड़ा उड़ते-उड़ते वैताढ्य पर्वत के वन में एक आश्रम के पास जाकर खड़ा हो गया। राजा नीचे उतरकर एक आसन पर बैठ गया। वहाँ उसने कुलपति गालव ऋषि के आश्रम के पास अद्भुत रूप लावण्य से युक्त एक पद्मावती नामक कन्या को अनेक सखियों के साथ देखी। बातचीत के क्रम में सखियों को यह जानकारी मिली कि यह वज्रबाहु का पुत्र सुवर्णबाहु है। उन सखियों ने आश्रम में जाकर गालव ऋषि और पद्मावती की माता रत्नावती से सारी बातें कहीं। फिर सभी सुवर्णबाहु राजा के पास पहुँचे। वहाँ पहुँचकर गालव ऋषि ने कहा ‘मुझे एक मुनि ने कहा था कि एक अश्व वज्रबाहु के पुत्र सुवर्णबाहु का अपहरण करके यहाँ लाएँगा। उसी के साथ पद्मावती का विवाह होगा, अतः आप पद्मावती के साथ विवाह करें।’
तब सुवर्णबाहु ने पद्मावती के साथ गान्धर्व विवाह किया। उस समय पद्मावती का सौतेला भाई पद्मोत्तर विद्याधर वहाँ आया और सुवर्णबाहु तथा पद्मावती को आदरपूर्वक वैताढ्य पर्वत पर रत्नपुर नगर में ले गया। वहाँ अनेक विद्याधरों ने अपनी कन्याओं का विवाह सुवर्णबाहु के साथ किया। उसके बाद वह अपनी राजधानी में वापस लौट आया।
एक दिन आयुध शाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ। उसकी सहायता से सुवर्णबाहु ने छः खंड पर विजय हासिल किया। फिर सुवर्णबाहु का चक्रवर्ती पद पर राज्याभिषेक हुआ। सुवर्णबाहु षट्खंड अधिपति चक्रवर्ती सम्राट बनकर प्रजा का पालन करने लगे।

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