अानंद, प्रेम व करुणा के महासागर

विश्वशांति के मूलाधार
समाधि के परम साधक
अानंद, प्रेम व करुणा के महासागर

घाती चतुष्क का क्षय कर समस्त तीर्थंकर परमज्योति स्वरूप बनते हैं, अष्टमहाप्रातिहार्य की शोभा के वे स्वामी बनते है। जब वे धरती पर चलते है तब नवनीत समान नव सुवर्ण पद्म उनके चरणारविंद के अधोभाग में स्थापित हो जाते हैं। वायु भी अनुकुल हो कर उन्हें परम शाता अर्पण करती है। पक्षीगण भी इस महाज्योति की प्रदक्षिणा करते हैं। प्रकृति की महासत्ता के इस सम्राट की सेवा में समस्त ऋतु एक ही साथ उपस्थित हो जाती हैं। इस प्रचंडप्रभावी मूर्ति के समक्ष करो़डो देवी-देवता उपस्थित हो जाते हैं। उनके अागमन से गगनमंडल अाच्छादित हो जाता है। जिस प्रकार तीर्थंकरों का यह एेश्वर्य समान होता है उस प्रकार गुणों का पूर्णत्व भी समान होता है। परंतु अादेय नाम कर्म की प्रबलता के कारण तेईसवें तीर्थपति श्री पार्श्वनाथ स्वामी अन्य तीर्थंकरों से भिन्न हैं। अतः अागम शास्त्रों में श्री पार्श्वनाथ प्रभु के लिए पुरुषादानीय इस विशेषण का विनियोग सुविदित है। अज्ञानकष्ट करते कमठयोगी की धूनी से अर्धजले सर्प को निकाल कर पार्र्श्वकुमार ने नवकार मंत्र द्वारा उसे अद्भुत समाधि प्रदान की। इसी कारण धरणेन्द्र बनी वह दिव्य अात्मा अपने परमोपकारी परमात्मा के प्रभाव की वृद्धि की व्यासंगी बनी है। श्री पार्श्वनाथ शासन की सैंकडों साध्वियाँ अब देवी रुप से परमात्मा के प्रभाव के लिए सदैव यत्नशील है एेसी मान्यता है। कारण कुछ भी हो, एक सत्य स्पष्ट है – अौर वह यह है कि श्री पार्श्वनाथस्वामी के प्रति सब के मन में विशेष अाकर्षण है। भारत के सर्वाधिक जिनालयों में मूलनायक के पद पर श्री पार्श्वनाथस्वामी बिराजमान है। प्राचीनतम तीर्थ एवं बिंब भी पार्श्वनाथ प्रभु के ही ज्यादा हैं। श्री शंखेर्श्वर पार्श्वनाथ, श्री स्थंभन पार्श्वनाथ, श्री चारुप पार्श्वनाथ, श्री अजाहरा पार्श्वनाथ अादि बिंबों की गणना विद्यमान प्राचीन बिंबों में होती है। अत्यंत नयनमनोहर एवं प्रभावसंपन्न बिंब भी श्री पार्श्वनाथ प्रभु के अधिकतर है। अाज भी भारतभर के श्री पार्श्वनाथ प्रभु के सैंकडों जिनालयों में रात्रि के समय में दैवी नृत्य, संगीत एवं वाद्यसंगीत की ध्वनि
कर्णगोचर होती हैं। अनेक जिनालयों में प्रायः अमीवृष्टि, अमीझरन, केसरवृष्टि, सुगंधव्याप्ति अादि चमत्कारों का अनुभव होता है।
विश्व में एकमात्र तारणहारी तत्त्व श्री वीतराग परमात्मा के लोकोत्तर स्वभाव के प्रति मोहभ्रान्त बने हुए जीवों के अाकर्षण के लिए इस प्रभाव का परिचय उपयुक्त हो सकता है। श्रद्धाभ्रष्ट मस्तिष्क में श्रद्धाबीज का अारोपण इस प्रभाव द्वारा हो सकता है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ तो एक ही है, परंतु विभिन्न स्थानों पर बिराजमान उनके बिंबों की विविध प्रभावकता के अनुरुप उनके विविध नाम प्रचलित हुए हैं। कई नामों का अाश्रयस्थान प्रभाव है, तो कई नामों का अाधार मूर्ति की मनोहारिता है। अनेक प्राचीन ग्रंथों में, काव्यों में, तीर्थकल्पों में एवं, छंद, रास, स्तोत्र, स्तवनों में भी श्री पार्श्वनाथस्वामी के विविध नाम प्राप्त होते हैं। पार्श्वनाथस्वामी के शताधिक तीर्थ अाज भी उपलब्ध हैं। भिन्न भिन्न 968 पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिकृति, प्रभाव एवं विस्तृत इतिहास अाज भी उपलब्ध है।
दस भव की मोक्षयात्रा में पद-पद पर ख़डी विकट परिस्थिति में भी समाधि रसायन द्वारा अात्मा को कलुषित बनने से रोकने के हेतु समाधि के परम साधक का यह कवच सब जीवों के लिए समाधि प्रदाता बनें…

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