नूतन तीर्थोद्धारित श्री जीरावला महातीर्थ

समकालीन तीर्थोद्धार का जो वातावरण बना है, तदन्तर्गत श्रीसिद्धगिरिराज, श्री शंखेर्श्वरजी, कलिकुण्ड, लोद्रवाजी, वाराणसी, नाकोडाजी, भीलडीयाजी, भोरोल, भाण्डवजी, कुल्पाकजी, भोपावरजी, पालनपुर अादि अनेकानेक तीर्थ मंदिरों की भव्य कायापलट हुई है-हो रही है। सब प्राचीन तीर्थ भव्यता का परिवेश धारण कर रहे हैं, तब जगजयवंत श्री जीरावलाजी का तीर्थधाम क्यों न विर्श्वोन्नत बनाया जाएं? अनेकानेक पूज्य अाचार्यदेवों एवं शिल्पियों का भी पुनः निर्माण-प्रतिष्ठा हेतु सदुपदेश-मार्गदर्शन मिलता रहा हैं।
विर्श्वमहिम श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर अाध्यात्मिक ऊर्जा को सतत उत्सर्जित करें एवं सभी मुमुुक्षुअों की मोक्षसाधना परिपूर्ण हो। भौगोलिक वातावरण, धर्मांध अाक्रमण एवं काल के प्रहरणों को सहते सहते जीर्ण-अतिजीर्ण से बने इस महामंदिर का संपूर्ण नवनिर्माण करना परमावश्यक कर्तव्य बन चुका था। मंदिर की संरचना के असंख्य शिल्प शास्त्रीय अवरोधों को हटा कर संपूर्ण शास्त्रशुद्ध प्रासाद का निर्माण करना वर्तमान समय की अग्रिम अावश्यकता बन चुकी थी अौर अाज हमारी यह भावना परिपूर्ण हो रही है।

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