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Timeline

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2016
Nov 02

भव्य तीर्थोद्धार

इस युग में 11 साल में हुए भव्य तीर्थोद्धार के हम साक्षी बनें, यह हमारा सौभाग्य है..।

1881
Nov 02

श्री उत्तमविजय

सं.1881 में श्री उत्तमविजय रचित ‘श्री पार्श्वप्रभु ना 108 नाम नां छंद’ में भी इस प्रभु की स्तवना की गयी है।

1800
Nov 02

ज्ञानविमलसूरिजी

अठारहवी सदी में श्री ज्ञानविमलसूरिजी ने 135 नामगर्भित श्री पार्श्वनाथ स्तवन एवं श्री कल्याणसागरजी ने श्री पार्श्वनाथ चैत्य परिपाटी में इस तीर्थ का उल्लेख किया है।

1700
Nov 02

श्री जीरावला पार्श्वनाथ की स्तुति

सं.1721 में श्री मेघविजयजी उपाध्याय ने श्री पार्श्वनाथ नाममाला में, सं.1731 में महोपाध्याय श्री विनय विजयजी ने श्री जिन सहस्त्र नाम स्तोत्र में, सं.1746 में श्री शीलविजयजी ने एवं सं.1755 में श्री ज्ञानविमलसूरिजी ने तीर्थमाला में श्री जीरावला पार्श्वनाथ की स्तुति की है।

1600
Nov 02

श्री जीरावला पार्श्वप्रभु के नाम एवं महिमा का उल्लेख

सं.1655 में श्री प्रेमविजयजी ने, सं.1656 में श्री नयसुंदरजी ने, सं.1665 में महोपाध्याय श्री कल्याणविजयजी गणिवर के शिष्य ने, सं.1665 में शांतिकुशलजी ने, सं.1649 में श्री गुणविजयजी के शिष्य ने एवं सत्रहर्वीं सदी में रत्नकुशलजी ने श्री पार्श्वप्रभु के विविध नामों का सूचन करने वाली स्तुतिगर्भित रचनाअों में श्री जीरावला पार्श्वप्रभु के नाम एवं महिमा […]

1568
Nov 02

विमलप्रबन्धरास

सं.1568 में श्री लावण्यसमय ने ‘विमलप्रबन्धरास’ में इस तीर्थ का नामोल्लेख किया है।

1556
Nov 02

विक्रमचरित पंचदंड

सं.1556 में श्री जिनहरकवि ने ‘विक्रमचरित पंचदंड’ में श्री जीरावला पार्श्वनाथ की स्तुति की है।

1541
Nov 02

गुरु गुण रत्नाकर

सं.1541 में ‘गुरु गुण रत्नाकर’ काव्य में श्री सोमचारित्रगणि ने, संघवी रत्नाशाह ने संघ सहित इस तीर्थ की यात्रा की थी – यह उल्लेख प्राप्त हुअा है।

1524
Nov 02

सौमसौभाग्य काव्य

सं.1524 में रचित ‘सौमसौभाग्य काव्य’ के मंगल श्लोक में तीर्थाधीश की स्तुति की गयी है।

1503
Nov 02

उपदेश सप्तति

सं.1503 में सोमधर्मगणि कृत ‘उपदेश सप्तति’ नामक ग्रंथ में श्री जीरापल्ली पार्श्वनाथ के प्रागट्य की कथा का अालेखन किया है।

1500
Nov 02

श्री जीरापल्ली पार्श्वनाथ

पन्द्रहवी शताब्दी में श्री जयशेखरसूरि ने श्री जीरापल्ली पार्श्वनाथ विनंती नामक स्तवन की रचना की है।

Nov 02

श्री शाश्वत तीर्थमाला

पन्द्रहवी शताब्दी में श्री कीर्तिमेरु द्वारा रचित श्री शाश्वत तीर्थमाला में इस स्थान का नामोल्लेख है।

1485
Nov 02

विद्याविलास पवाडा

सं.1485 में पींपलगच्छीय श्री हीरानंदसूरि द्वारा रचित ‘विद्याविलास पवाडा’ नामक दीर्घकाव्य में इस तीर्थ का उल्लेख है।

1432
Nov 02

श्री जीरापल्ली पार्श्वनाथ फागु

सं.1432 में पं श्री मेरुनंदनजी ने ‘श्री जीरापल्ली पार्श्वनाथ फागु’ में इस तीर्थ की स्तुति एवं मनोहर वर्णन किया है।

1368
Nov 02

इस्लामी अाक्रमण

‘जीरापल्ली मंडन श्री पार्श्वनाथ विनंती’ नामक एक प्राचीन स्तोत्र के अनुसार सं.1368 में इस तीर्थ पर इस्लामी अाक्रमण हुअा था।

Nov 02

जीरापल्ली मंडन श्री पार्श्वनाथ विनंती

‘जीरापल्ली मंडन श्री पार्श्वनाथ विनंती’ नामक एक प्राचीन स्तोत्र के अनुसार सं.1368 में इस तीर्थ पर इस्लामी अाक्रमण हुअा था।

1340
Nov 02

झांझण शाह

श्री रत्नमंडनगणि विरचित सुकृतसागर के अनुसार सं.1340 में झांझण शाह संघ सहित इस तीर्थ की यात्रा में पधारे थे, उन्होंने अमूल्य मोती एवं सुवर्णतार से सुशोभित चंदरवा रंगमंडप में बँधवाया था।

1109
Nov 02

श्री जीरावला पार्श्वनाथजी का प्रागट्य

सं.1109 में श्री जीरावला पार्श्वनाथजी का प्रागट्य हुअा। उससे पहले भी यह नगरी मनोहर जिन प्रासादों से विभूषित थी। इस नगर की एवं तीर्थ की प्राचीनता के कई अाधार अाज भी विद्यमान हैं।

0835
Jan 01

कुवलयमाला ग्रंथ

सं.835 में श्री उद्योतनसूरि द्वारा रचित कुवलयमाला नामक ग्रंथ की प्रशस्ति के अनुसार श्री यक्षदाता गणि ने इस प्रदेश को अनेक जिनप्रासादों द्वारा विभूषित किया था।

0001
Nov 02

भाववाही स्तोत्रों का निर्माण

श्री जिनसुंदरसूरि, श्री मुनिसुन्दरसूरि, श्री जयशेखरसूरि, श्री विनयहंसगणि, श्री भुवनसुंदरसूरि, श्री महेन्द्रसूरि, श्री लक्ष्मीसागरसूरि, श्री उदयधर्मगणि अादि अनेक महापुरुषों ने श्री परमात्मा को संबोधित सुंदर भाववाही स्तोत्रों का निर्माण किया है।

Nov 02

तीर्थमाला

श्री मेघकवि रचित तीर्थमाला में इस तीर्थ की महिमा का संक्षेप में वर्णन किया गया है।

Nov 02

विधर्मी अाक्रमण

कान्हडदेव प्रबंध में भी विधर्मी अाक्रमण का उल्लेख है।

Nov 02

वीर वंशावलि

‘वीर वंशावलि’ में श्री अजितदेवसूरि ने इस तीर्थ प्रासाद की प्रतिष्ठा की यह उल्लेख प्राप्त होता है।

Nov 02

काव्य मनोहर

श्री महेश्वर कवि कृत ‘काव्य मनोहर’ में श्री अाल्हराजा ने इस तीर्थ को एक विशाल मंडप द्वारा सुशोभित किया – यह उल्लेख प्राप्त होता है।

Nov 02

उपदेश तरंगिणी

श्री रत्नमंदिरगणि निर्मित ‘उपदेश तरंगिणी’ के अनुसार संघवी पेथड एवं झांझणने इस तीर्थ में एक भव्य जिनप्रासाद का निर्माण किया था।

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