तमे मन मूकीने वरस्यां…
Post by: arihant in Shri Parshwanath Bhaktigeet
तमे मन मूकीने वरस्यां, अमे जनम जनम ना तरस्यां,
तमे मूशल धारे वरस्यां, अमे जनम जनम ना तरस्यां…
हजार हाथे तमे दीधुं पण, झोली अमारी खाली;
ज्ञान खजानो तमे लूटाव्यो, तोय अमे अज्ञानी;
तमे अमृतरूपे वरस्या, अमे झेर ना घुंटडा फरस्या… तमे0
स्नेहनी गंगा तमे वहावी, जीवन निर्मल करवा;
प्रेमनी ज्योति तमे जगावी, आतम उज्जवल करवा;
तमे सूरज थई ने चमक्यां, अमे अंधारा मां भटक्यां… तमे0
शब्दे शब्दे शाता आपे, एवी तमारी वाणी;
ए वाणीनी पावनताने, अमे कदी ना पिछानी;
तमे महेरामण थई उमट्यां, अमे कांठे आवी अटक्यां… तमे0
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