नित्य जाप जपीये पाप खपीये – स्वामि नाम शंखेश्वरो
सकल भविजन चमत्कारी, भारी महिमा जेहनो,
निखिल आतम रमा राजीत, नाम जपीये तेहनो;
दुष्ट कर्माष्ट गंजरी जे, भविक जन मन सुखकरो,
नित्य जाप जपीये पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो. 1
बहु पुण्यराशि देवकाशि तत्थ नगरी वणारसी,
अश्वसेन राजा राणी वामा, रुपे रति तनु सारिखी;
तस कुखे चौद सुपन सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतर्यो नित्य0 2
पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमीयो,
सुरकुमरि सुरपति भक्ति भावे, मेरु श्रृंगे स्नापियो;
प्रभाते पृथ्वीमति प्रमोदे, जन्म महोत्सव अति कर्यो नित्य0 3
त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब आवीया,
तव मात ताते प्रसन्न चित्ते, भामिनी परणाविआ;
कमठ शठ कृत अग्निकुंडे, नाग बलतो उद्धर्यो नित्य0 4
पोषवदी एकादशी दिने, प्रव्रज्या जिन आदरे,
सुर असुर राजी भक्ति साजी, सेवना झाझी करे;
काउस्सग्ग करतां देखी कमठे, कीध परिषह आकरो नित्य0 5
तव ध्यान धारा दृढ जिनपति, मेघ धारे नवि चल्यो,
चलित आसन धरण आयो, कमठ परिसह अटकल्यो;
देवाधिदेव नी करे सेवा, कमठने काढी परो नित्य0 6
क्रमे पामी केवलज्ञान कमला, संघ चउविह स्थापीने,
प्रभु गया मोक्षे समेतशिखरे, मास अणसण पालीने;
शिवरमणी रंगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करो नित्य0 7
भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टले,
राजा राणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मले;
कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत माता जय करो नित्य0 8
जरा जर्जरी भूत यादव, सैन्य रोग निवारतां,
वढीयार देशे बीराजे, भविक जीवने तारता,
ए प्रभु तणा पदपद्म सेवा, ’रूप’ कहे प्रभुता वरो नित्य0 9
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