प्रभु पासजी ताहरुं नाम मीठुं…
प्रभु पासजी ताहरुं नाम मीठुं, तिहुं लोकमां एटलुं सार दीठुं;
सदा समरतां सेवतां पाप नीठुं, मन माहरे ताहरुं ध्यान बेठुं… ।।1।।
मन तुम पास वसे रात दिसे, मुख पंकज निरखवा हंस हीसे;
धन्य ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भक्ति भावे करी विनवीजे… ।।2।।
अहो! एह संसार छे दुःख घोरी, इन्द्रजालमां चित्त लाग्युं ठगोरी;
प्रभु मानीए विनति एक मोरी, मुज तार तुं तार बलिहारी तोरी… ।।3।।
सही स्वप्र जंजालने संग मोह्यो, घडियालमां काल रमतो न जोयो;
मुधा एम संसारमां जन्म खोयो, अहो! घृत तणे कारणे जल वलोयो… ।।4।।
ए तो भमरलो केसुअा भ्रांति धायो, जई शुक तणी चंचू मांहे भरायो;
शुके जंबु जाणी गले दुःख पायो, प्रभु! लालचे जीवडो एम वाह्यो… ।।5।।
भम्यो भर्म भूल्यो रम्यो कर्म भारी, दया धर्मनी शर्म में न विचारी;
तोरी नम्र वाणी परम सुखकारी, तिहुं लोकना नाथ! में नवि संभारी… ।।6।।
विषय वेलडी शेलडी करीए जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तुज वाणी;
एहवो भलो भूंडो निज दास जाणी, प्रभु! राखीए बांहीनी छांय प्राणी… ।।7।।
मोरा विविध अपराधनी कोडी सहीए, प्रभु! शरण अाव्या तणी लाज वहीए;
वली घणी घणी विनति एम कहिए, मुज मानससरे परम हंस रहीए… ।।8।।
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