सकल भविजन चमत्कारी….

सकल भविजन चमत्कारी, भारी महीमा जेहनो,
निखिल अातमरमा राजित, नाम जपीये तेहनो;
दुष्ट कर्माष्टक गंजरी जे, भविक जन मन सुखकरो,
नित्य जाप जपीये पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो… नित्य0।।1।।

बहु पुन्य राशि देश काशि, तत्थ नयरी वाणारसी,
अश्वसेन राजा राणी वामा, रुपे रति तनु सारिखी;
तस कूखे सुपन चौद सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतर्यो… नित्य0।।2।।

पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिने प्रभु जनमीया,
सुरकुमरी सुरपति भक्ति भावे, मेरु शृंगे स्नापिया;
प्रभाते पृथ्वीपति प्रमोदे, जन्म महोत्सव अति कर्यो… नित्य0।।3।।

त्रण लोक तरुणी मन प्रमोदी, तरुण वय जब अावीया,
तव मात ताते प्रसन्न चित्ते, भामिनी परणाविया;
कमठ शठ कृत अग्नि कुंडे, नाग बलतो उद्धर्यो… नित्य0।।4।।

पोष वदी एकादशी दिने, प्रवज्या जिन अादरे,
सुर असुर राजा भक्ति साजा, सेवना झाझी करे;
काउस्सग्ग करतां देखी कमठे, कीधो परिसह अाकरो… नित्य0।।5।।

तव ध्यान धारा दृढ जिनपति, मेघ धारे नवि चल्यो,
चलित अासन धरण अायो, कमठ परिसह अटकल्यो;
देवाधिदेवनी करे सेवा, कमठने काढी परो… नित्य0।।6।।

क्रमे पामी केवलज्ञान कमला, संघ चउविह स्थापीने,
प्रभु गया मोक्षे समेतशिखरे, मास अणसण पालीने;
शिवरमणी रंगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करो… नित्य0।।7।।

भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टले,
राज राणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मले;
कल्ततरुथी अधिकदाता, जगत त्राता जय करो… नित्य0।।8।।

जरा जर्जरी भूत यादव, सैन्य रोग निवारता,
वढीयार देशे नित्य बिराजे, भविक जीवने तारता;
ए प्रभु तणा पद पद्म सेवा, ’रुप’ कहे प्रभुता वरो… नित्य0।।9।।

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