अाज मनोरथ माहरो फलियो…

(राग : तुज शाशनरस अमृत मीठुं…/एक पंखी अावीने…)

अाज मनोरथ माहरो फलियो, पास जिनेसर मलियो रे;
दुरगतिनो भय दूरे टलियो, पायो पुण्य पोटलियो रे… अाज0।।1।।

मोह महाभट जे छे बलियो, सयल लोक जेणे छलियो रे;
मायामांहे जग सहु डुलियो, ते तुज तेजे गलियो रे… अाज0।।2।।

तुज दरसन विण बहु भव रुलियो, कुगुरु कुदेवे जलियो रे;
झाझा दु:खमांही हांफलियो, गति यारे अाफलियो रे… अाज0।।3।।

कुमति कदाग्रह हेले दलियो, जब जिनवर सांभलियो रे;
प्रभु दीठे अाणंद उछलियो, मगमांहे घी ढलियो रे… अाज0।।4।।

अवर देवशुं नेह विचलियो, जिनजीशुं चित्त हलियो रे;
पामी सरस सुधारस फलियो, कुण ले जल भांभलियो रे… अाज0।।5।।

जन मन वांछित पूरण कलियो, चिंतामणि झलहलियो रे;
‘मेघ’ कहे गुणमणि मादलियो, दो दोलत दादलियो रे… अाज0।।6।।

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