अब मोहे एेसी अाय बनी…

(राग : मालकौंस…/जिन! तेरे चरण की…/मैया मोरी में नहीं माखण…)

अब मोहे एेसी अाय बनी, अब मोहे एेसी अाय बनी..!
श्री शंखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी… अब0।।1।।

तुम बिन कोउ चित्त न सुहावे, अावे कोडी गुणी;
मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल भणी… अब0।।2।।

तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरणी;
नाम जपुं निशि वासर तेरो, ए मुज शुभ करणी… अब0।।3।।

कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरणी;
नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारुं दु:ख हरणी… अब0।।4।।

मिथ्यामति बहु जन है जगमें, पद न धरत धरनी;
उनसे अब तुज भक्तिप्रभावे, भय नहि एक कनी… अब0।।5।।

सज्जन-नयन सुधारस-अंजन, दुरजन रवि भरनी;
तुज मुरति निरखे सो पावे, सुख ‘जस’ लील घनी… अब0।।6।।

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