आहाेरेनगरे आंनदसु रे
Post by: arihant in Shri Parshwanath Stavan
आहाेरेनगरे आंनदसु रे,
भेटया गाेडी पास सलुसा |
पाप पडल सवि मेटीया रे,
अनुभव प्रगटयाे उलास || स ||१ ||
जीव अनादीकालनाे रे, ललचाणाे मिथ्या नार स |
छेलछबीलाे भाेगमें रे, पाप किया अणपार || स || २ ||
फरसईद्धी हस्ति परे रे, दुःखबंधन सहे जीव-स |
जिहवावश पडे माछलाे रे, जाल में नाखे गीव || ३ ||
ध्राण तणा वशथी ल्ह्याे रे, भ्रमरपरे निज घात-स |
पतंग जिम छे जीवडाे रे नारी रूप दीवपात || स || ४ ||
राग रसीलाे जे थयाे रे, मृग जिम पाम्याे मार-स |
क्राेध मान माया भूंडी रे, लीधी मनमें धार || स ५ ||
लाेभी जगत में पापीयाे रे, सघली गमावे लाज-स |
ईम में जिनजी ! बहु भवे रे, कीधा अनेक अकाज || स ६ ||
हिवे तुम शरणे आवियाे रे, मेटाे भव भय नाथ स |
”सूरि राजेन्द्र” ! सांचे मने रे, ग्रह्याे तुमचाे हाथ ||७||
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