अंतरजामी सुण अलवेसर…

(राग : मैत्रीभावनुं पवित्र झरणुं…/तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो…)

अंतरजामी सुण अलवेसर, महिमा त्रिजग तुमारो;
सांभलीने अाव्यो हुं तीरे, जन्म मरण दु:ख वारो,
सेवक अरज करे छे राज, अमने शिव-सुख अापो,
अापो अापोने महाराज, अमने मोक्ष सुख अापो… सेवक0।।1।।

सुह कोनां मनवांछित पूरो, चिंता सहुनी चूरो रे,
एवुं बिरुद छे राज तमारुं, केम राखो छो दूरे… सेवक0।।2।।

सेवकने वलवलतो देखी, मनमां महेर न धरशो रे,
करुणासागर केम कहेवाशो, जो उपकार न करशो… सेवक0।।3।।

लटपटनुं हवे काम नहि छे, प्रत्यक्ष दरिशन दीजे रे,
धुमाडे धीजुं नहि साहिब, पेटे पड्या पतीजे… सेवक0।।4।।

श्री शंखेर्श्वर मंडण साहेब, विनतडी अवधारो रे,
कहे ‘जिनहर्ष’ मया करी मुजने, भवसागरथी तारो… सेवक0।।5।।

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