चित्त समरी शारद माय रे…

(राग : पंचम सुरलोकना वासी रे…/भवि तुमे अष्टमी तिथि…)

चित्त समरी शारद माय रे, वली प्रणमुं निज गुरुपाय रे;
गाउं त्रेवीशमा जिनराय रे, व्हालाजीनुं जन्म कल्याणक गाउं रे,
सोनारुपाना फूलडे वधावुं रे, थाल भरी भरी मोतीडे वधावुं रे.. व्हा0।।1।।

काशीदेश वाराणसी राजे रे, अश्वसेन छत्रपति छाजे रे;
राणी वामा गृहिणी सुराजे रे… व्हाला0।।2।।

चैत्रवदि चोथे ते चविया रे, माता वामा कूखे अवतरीया रे;
अजुअाल्यां एहनां परियां रे… व्हाला0।।3।।

पोष वदि दशमी जगभाण रे, होवे प्रभुनुं जन्म कल्याण रे;
वीशस्थानक सुकृत कमाण रे… व्हाला0।।4।।

नारकी नरके सुख पावे रे, अंतर्मुहूर्त दु:ख जावे रे;
ए तो जन्मकल्याणक कहावे रे… व्हाला0।।5।।

प्रभु त्रण भुवन शिरताज रे, तुमे तारण तरण जहाज रे;
कहे ‘दीपविजय’ कविराज रे… व्हाला0।।6।।

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