दादा पारसनाथने नित्य नमीये रे…
(राग : वीरकुंवरनी वातडी…)
दादा पारसनाथने नित्य नमीये रे, नित्य नमीये रे, नित्य नमीये…
नमीये तो भव नहि भमीये, हांरे… चित्त अाणी ठाम… दादा0।।1।।
वामा उर सर हंसलो जगदीवो, जगतारक प्रभु! चिरंजीवो;
एनुं दर्शन अमृत पीवो, हांरे… दीठे सुख थाय… दादा0।।2।।
अश्वसेन कुल चन्द्रमा जगनामी, अलवेसर अंतरजामी;
त्रण भुवननी ठकुराई पामी, हांरे… दीठे सुख थाय… दादा0।।3।।
परमात्म परमेसरू जिनराय, जस फणीपति लंछन पाय;
काशीदेश वाराणसी राय, हांरे… जपीए शुद्ध प्रेम… दादा0।।4।।
गणधर दश द्वादशांगीना धरनार, सोल सहस मुनिवर धार;
अडतीस सहस साहुणी सार, हांरे… रुडो जिन परिवार… दादा0।।5।।
नीलवरण नव हाथ सुंदर काय, एकशत वर्ष पाल्युं अाय,
पाम्या परम महोदय ठाय, हांरे… सुख सादि अनंत… दादा0।।6।।
जिन उत्तमपद सेवना सुखकारी, रुपकीर्ति कमला विस्तारी,
मुनि ‘सोमविजय’ जयकारी, प्रभुजी परम कृपाल… दादा0।।7।।
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