हो साहिब! पास रंग लग्गा…

(राग : हो प्रभुजी! मुज अवगुण…/जिण! तेरे चरण…/अब मोहे एेसी अाय…)

हो साहिब! पास रंग लग्गा, रंग लग्गा, चोलरंग लग्गा, लग्गा रे दिललग्गा;
तुं हि जगत के दिल का ज्ञानी, तुं हि परम शिवमग्गा;
अकल अरुपी सिद्ध स्वरुपी, परम पुरुष जग मग्गा…. हो साहिब0।।1।।
अवर देव तुज अंतर मोटो, जिण परि हंसने बग्गा;
बिहु को नाम कहत जन पंखी, ज्युं कोयलने कग्गा… हो साहिब0।।2।।
कंठ वहुं प्रभु की गुणमाला, ज्युं बंभण गले धग्गा;
मोरे मनमां तुंहि ज वसियो, ज्युं पट अंतर तग्गा… हो साहिब0।।3।।
मोह मिथ्यात्व करत कहा अबथें, चालत नहीं तस ठग्गा;
नाथ निरंजन ध्यान धरंता, दुरे दोहग दग्गा… हो साहिब0।।4।।
परमानंद परमसुख पायो, भावक भव भय भग्गा;
‘ज्ञानविमल’ प्रभु सुजस भणंते, भाग्य दिन अब जग्गा… हो साहिब0।।5।।

Leave a comment