जय जय श्रीगुणगणनिधान रे…
(राग : पहेले भवे एक गामनो रे…/दु:ख दोहग…/वीर मने तारो…)
जय जय श्रीगुण-गणनिधान रे, श्री जगवल्लभ पास;
मृगमद परे महके सदा रे, महिमा सुजस जस वास…!
जिणंदराय! निरख्ये अतिसुख थाय, जे वचनगुणे न कहाय… जिणंद0।।1।।
नमित अमित शचीपति तणां रे, मुकुटरत्नरुचि नीर;
धौतपदांबुज जेहनां रे, भांज्या भवजंजीर… जिणंद0।।2।।
सफल जन्म दिन अाजनो रे, पसरी मंगलमाल;
नेत्र पवित्र निरखी थयां रे, गात्र नमत उजमाल… जिणंद0।।3।।
अाज मिथ्यामत तम हण्यो रे, प्रगट्यो अनुभव सूर;
कर्म कषायबल क्षय थयो रे, जब तुं ध्यान हजूर… जिणंद0।।4।।
तुम अाणा गंगाजले रे, नाह्यो धरी उच्छाह;
अशुचि उपाधि सवि मिट्या रे, विरम्यो विषयादाह… जिणंद0।।5।।
ज्ञानक्रिया भेद भूमिका रे, किरिया संग सरुप;
प्रगटे धर्मसंन्यासथी रे, ए सवि तुंहि अनूप… जिणंद0।।6।।
श्री अश्वसेननृप लाडिलो रे, वामानंदन देव;
निर्विकल्प तुम सेवना रे, द्यो मुज एहवी टेव… जिणंद0।।7।।
‘ज्ञानविमल’ गुणथी लह्या रे, लोकालोकप्रकाश;
प्रभु महिमाथी शाश्वतो रे, अनुभव उदय विलास… जिणंद0।।8।।
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