जिनजी त्रेवीशमो जिन पास…
(राग : पासजी वामाजीना नंद के सुणज्यो विनति रे लो…)
जिनजी त्रेवीशमो जिन पास के, अाश मुज पूरवे रे लो, माहरा नाथजी रे लो0
जिनजी इहभव परभव दु:ख, दोहग सवि चूरवे रे लो; मा0
जि0 अाठ प्रातिहार्यशुं, जगमां तुं जयो रे लो, मा0
जि0 ताहरा वृक्ष अशोकथी, शोक दूरे गयो रे लो, मा0… ।।1।।
जि0 जानु प्रमाण गीर्वाण, कुसुम वृष्टि करे रे लो, मा0
जि0 दिव्यध्वनि सुर पूरे के, वांसलीये स्वरे रे लो; मा0
जि0 चामर केरी हार चलंती, एम कहे रे लो, मा0
जि0 जे नमे अम परे ते भवी, उर्ध्वगति लहे रे लो, मा0… ।।2।।
जि0 पादपीठ सिंहासन, व्यंतर विरचीये रे लो, मा0
जि0 तिहां बेसी जिनराज, भविक देशना दीये रे लो, मा0
जि0 भामंडल शिर पूंठे, सूर्य परे तपे रे लो, मा0
जि0 निरखी हरखे जेह, तेहना पातक खपे रे लो, मा0… ।।3।।
जि0 देवदुंदुभिनो नाद, गंभीर गाजे घणो रे लो, मा0
जि0 त्रण छत्र कहे तुज के, त्रिभुवन पति पणो रे लो; मा0
जि0 ए ठकुराई तुज के, बीजे नवि घटे रे लो, मा0
जि0 रागी द्वेषी देव के, ते भवमां अटे रे लो, मा0… ।।4।।
जि0 पूजक निंदक दोय के, ताहरे समपणे रे लो0, मा0
जि0 कमठ धरणपति उपर, समचित्त तुं गणे रे लो; मा0
जि0 पण उत्तम तुज पाद-‘पद्म’ सेवा करे रे लो, मा0
जि0 तेह स्वभावे भव्य के, भवसायर तरे रे लो, मा0… ।।5।।
Leave a comment