कोयल टहुंक रही मधुवन में…

(राग : तुं प्रभु माहरो…/यशोमति मैया से पूछे…/टीलडी रे…/जय-4 पार्र्श्वजिणंदा…)

कोयल टहुंक रही मधुवन में,
पार्श्वशामलीया वसो मेरे मन मेंे; मेरे दिल में0
काशीदेश वाराणसी नगरी,
जन्म लीयो प्रभु क्षत्रिय कुल में… पार्र्श्व0।।1।।

बालपणामां प्रभु अद्भुत ज्ञानी,
कमठको मान हर्यो एक पल में… पार्र्श्व0।।2।।

नाग निकाला काष्ट चिराकर,
नागकुं सुरपति कियो एक छीन में… पार्र्श्व0।।3।।

संयम लई प्रभु चिचरवां लाग्या,
संयमे भींज गयो एक रंगमे… पार्र्श्व0।।4।।

समेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्या,
पार्श्वजी को महिमा तीण भुवन में… पार्र्श्व0।।5।।

‘उदयरतन’ की एही अरज है,
दिल अटक्यो तोरा चरण कमल में… पार्र्श्व0।।6।।

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