मनमाेहन प्रभु पासजी…

मनमाेहन प्रभु पासजी, सुणाे जगत अाधार जी;
शरणे अाव्याे रे प्रभु ताहरे मुज दुरित निवार जी. मन01

विषय-कषायना पासमां, भम्याे काळ अनंत जी;
राद-द्वेष महा चाेरटा, लुंटयाे धर्मनाे पंथजी. मन02

पण कांई पूरण पुन्यथी, मळीया श्री जिनराजजी
भवसमुद्रमां बुडतां, अालंबन जिम जहाज जी. मन03

कमठे निज अज्ञानथी, उपसर्ग कीधा बहु जात जी;
ध्यानानल प्रगटावीने, कीधाे कर्मनाे घात जी. मन04

केवळज्ञानथी देखीयुं, लाेकालाेक स्वरूप जी;
विजय मुक्तिपद जई वर्युं, सादि अनंत चिद्ररूप जी. मन05

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