मेरे हो चिंतामणि प्रभु…

(राग : धूणी रे धखावी…/क्युं न हो सुनाई स्वामी…/तुं प्रभु मारो…)

मेरे हो चिंतामणि प्रभु, पासजी का काम है…!
जलधि किनारे भारा, नयर गंधार सारा,
चिंतामणि पार्श्वप्रभु का, उहां बडा धाम है… मेरे हो0।।1।।

मूरति प्रभु की मीठी, एेसी छबी नांहि दीठी;
शान्तसुधारस केरां, मानुं एक ठाम है… मेरे हो0।।2।।

दूषम काल में स्वामी, दु:ख की है नांहि खामी;
अानंद समाधि दीजे, मुजे बडी हाम है… मेरे हो0।।3।।

अखूट खजाना तेरा, थोडा बहुत कर दे मेरा;
सुख जनकुं देना वे तो, प्रभु तेरा काम है… मेरे हो0।।4।।

बिरुद संभाल लीजे, मेरा तेरा नांहि कीजे;
‘तरण तारण’ एेसा, प्रभु तेरा नाम है… मेरे हो0।।5।।

‘वीर’ कहे शिर नामी, सुणो हो गंधार स्वामी;
देना हो तो ज्ञान दे दो, दूजा नांहि काम है… मेरे हो0।।6।।

निधि रस निधीन्दु वरसे, पोष मासे शीत पक्षे;
चतुर्दशी दिन भेटे, ए ही अभिराम है… मेरे हो0।।7।।

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