मेरे साहिब तुमही हो…

(राग : मुज सरीखा मेवासीने…/जनम जनम का साथ है…)

मेरे साहिब तुमही हो, प्रभु पास जिणंदा;
खिजमतगार गरीब हूँ, मैं तेरा बंदा… मैं तेरा बंदा… मेरे0।।1।।

मैं चकोर करुं चाकरी, जब तुमही चंदा;
चक्रवाक मैं हुई रहुं, जब तुमही दिणंदा… जब तुमही0… मेरे0।।2।।

मधुकर परे मैं रणझणुं, जब तुम अरविंदा;
भक्ति करुं खगपति परे, जब तुम गोविंदा… जब तुम0… मेरे0।।3।।

तुम जब गर्जित घन भये, तब में शिखिनंदा;
तुम जब सायर मैं तदा, सुरसरिता अमंदा… सुरसरिता0… मेरे0।।4।।

दूर करो दादा पासजी!, भव दु:ख का फंदा;
‘वाचक जश’ कहे दासकुं, दीयो परमानंदा… दीयो0… मेरे0।।5।।

Leave a comment