नित्य समरुं साहिब सयणा…
(राग : सुणो शांति जिणंद…/मनमोहन सुंदर मेला…/सनेही संत ए गिरि सेवो…)
नित्य समरुं साहिब सयणा, नाम सुणतां शीतल श्रवणा,
जिन दरिसणे विकसे नयणा, गुण गातां उलसे वयणा रे;
शंखेश्वर साहिब साचो, बीजानो अाशरो काचो रे… शंखे0।।1।।
द्रव्यथी देव दानव पूजे, गुण शांत रुचिपणुं लीजे;
अरिहापद पज्जव छाजे, मुद्रा पद्मासन राजे रे… शंखे0।।2।।
संवेगे तजी घरवासो, प्रभु पार्श्वना गणधर थाशो;
तव मुक्तिपुरीमां जाशो, गुणिलोकमां वयणे गवाशो रे… शंखे0।।3।।
एम दामोदर जिनवाणी, अाषाढी श्रावके जाणी;
जिन वंदी निज घर अावे, प्रभु पार्श्वनी प्रतिमा भरावे रे… शंखे0।।4।।
त्रण काल ते धूप उखेवे, उपकारी श्री जिन सेवे;
पछी तेह वैमानिक थावे, ते प्रतिमा पण तिहां लावे रे… शंखे0।।5।।
घणां काल पूजी बहुमाने, वली सूरज चंद्र विमाने;
नागलोकना कष्ट निवार्या, ज्यारे पार्श्वप्रभुजी पधार्या रे… शंखे0।।6।।
यदुसैन्य रह्यो रण घेरी, जीत्या नवि जाये वैरी;
जरासंघे जरा तव मेली, हरि बल विना सघले फेली रे… शंखे0।।7।।
नेमीश्वर चोकी विशाली, अट्ठम करे वनमाली;
तूठी पद्मावती बाली, अापे प्रतिमा झाकझमाली रे… शंखे0।।8।।
प्रभु पार्श्वनी प्रतिमा पूजी, बलवंत जरा तव ध्रुजी;
छंटकाव न्हवण-जल जोती, जादवनी जरा जाय रोती रे… शंखे0।।9।।
शंख पूरी सहुने जगावे, शंखेश्वर गाम वसावे;
मंदिरमां प्रभु पधरावे, शंखेश्वर नाम धरावे रे… शंखे0।।10।।
रहे जे जिनराज हजूरे, सेवक मनवंछित पूरे;
ए प्रभुजीने भेटण काजे, शेठ मोतीभाईने राजे रे… शंखे0।।11।।
नाना माणेक केरा नंद, संघवी प्रेमचंद वीरचंद;
राजनगरथी संघ चलावे, गामे-गामना संघ मिलावे रे… शंखे0।।12।।
अढार अठ्ठोत्तेर वरसे, फागण वदी तेरस दिवसे;
जिन वंदी अानंद पावे, ‘शुभवीर’ वचन रस गावे रे… शंखे0।।13।।
Leave a comment