अोलगडी अवधारो अाश धरी…
(राग : हे त्रिशलाना जाया…)
अोलगडी अवधारो… अाश धरी हुं अाव्यो…!
श्री शंखेश्वर अलवेसर तारी, अाश धरी हुं अाव्यो…
सेवक पार करोने साहिब! चिंतामणी में पायो… अोलगडी0।।1।।
देव घणा सेव्या में पहेला… जिहां लगे तुं नवि मलियो…;
हवे भवांतरमां पण तेहथी… किम हि न जाउं छलीयो… अोलगडी0।।2।।
अतिशय ज्ञानादिक गुण तारा… दिसे छे प्रभु जेहवा…;
सूरज अागल जिम ग्रहगण दिपे… हरिहर दीपे तेहवा… अोलगडी0।।3।।
कलिकाले प्रगट तुज परचो… देखुं विश्व मोझार…;
पुरुषादाणी पार्श्व जिनेश्वर… बाह्य ग्रहीने तारो… अोलगडी0।।4।।
पुष्करावर्त घनाघन पामी… अोर छिल्लर नवि याचुं…;
काम कुंभ साचो पामीने… चित्त करे कोण काचुं… अोलगडी0।।5।।
जरा निवारी जादव केरी… सुरनर वर सहु पूज्या…;
पासजी प्रत्यक्ष देखत दरिसण… पाप मेवासी ध्रुज्या… अोलगडी0।।6।।
सो वाते एक वातडी जाणो… भवजल पार उतारो…;
पंडित उत्तमविजयनो सेवक… ‘रत्नविजय’ जयकारो… अोलगडी0।।7।।
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