पास शंखेश्वर भेटीए रे लोल…

(राग : दु:खहरणी दिपालीका रे लाल…/जननीनी जोड सखी…)

पास शंखेश्वर भेटीए रे लोल, मेटीए विघ्न विकार रे वाल्हेसर;
अद्भुत कीर्ति कलियुगे रे लोल, भविजनने अाधार रे वाल्हेसर… पास0।।1।।
देशो देशना जन घणा रे लोल, यात्रा करवा काज रे वाल्हेसर;
अावे अति उलट भर्या रे लोल, लेइ लेइ पूज समाज रे वाल्हेसर… पास0।।2।।
नवरंगी अांगी रचे रे लोल, भवि अंगे धरी भाव रे वाल्हेसर;
एहि ज भावना भावता रे लोल, भवजल तरवा नाव रे वाल्हेसर… पास0।।3।।
कमठहठी हठ भंजणो रे लोल, रंजणो जग जन चित्त रे वाल्हेसर;
साथ मिल्यो हवे ताहरो रे लोल, कीधो जन्म पवित्र वाल्हेसर… पास0।।4।।
वामानंदन वालहा रे लोल, प्रभावतीना नाथ रे वाल्हेसर;
‘ज्ञानविमल’ गुण बांह्यथी रे लोल, ग्रहीने करो सनाथ रे वाल्हेसर… पास0।।5।।

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