पास शंखेश्वरा! सार कर सेवका…

(राग : तार मुज! तार मुज! तार त्रिभुवन धणी…)

पास शंखेश्वरा! सार कर सेवका, देव! कां एवडी वार लागे;
कोडी कर जोडी दरबार अागे खडा, ठाकुरा चाकुरा मान मागे… पास0।।1।।

प्रगट था पासजी, मेली पडदो परो, मोड असुराणने अाप छोडो;
मुज महीराण मंजूषमां पेसीने, खलकना नाथजी बंध खोलो… पास0।।2।।

जगतमां देव! जगदीश तुं जागतो, एम शुं अाज जिनराज! उंघे?;
मोटा दानेश्वरी तेहने दाखीए, दान दे जेह जगकाल मुंघे… पास0।।3।।

भीड पडी जादवा जोर लागी जरा, तत्क्षण त्रिकमे तुज संभार्यो:
प्रगट पातालथी पलकमां तें प्रभु, भक्तजन तेहनो भय निवार्यो… पास0।।4।।

अादि अनादि अरिहंत! तुं एक छे, दीनदयाल छे कोण दूजो?;
‘उदयरत्न’ कहे प्रगट प्रभु पासजी, पामी भयभंजनो एह पूजो… पास0।।5।।

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