पार्श्व जिनेश्वर शिवगति पामी…
Post by: arihant in Shri Parshwanath Stavan
(राग : एक पंखी अावीने…/फूल तुम्हें भेजा था खत में…/मेरा जीवन कोरा…)
पार्श्व जिनेश्वर शिवगति पामी, प्रभु मुज अंतरयामीजी;
पुण्य पसाये सेवा पामी, हुं प्रणमुं शिरनामीजी… पार्श्व0।।1।।
अहनिश तुम ध्याने हुं धामी, दुरित दुर्भगता वामीजी;
अातमरामी तुं जिननामी, गतनामी नि:कामीजी… पार्श्व0।।2।।
देव जगतमां बहुला दीसे, पण तेहमां बहु खामीजी;
कोई रागी कोई द्वेषी सोगी, कोई क्रोधी कोई कामीजी… पार्श्व0।।3।।
पूजक भावे तेह अपामी, न लहे मूल विदामीजी;
थिरभावे समता तुज जामी, अनुभव गुण अभिरामीजी… पार्श्व0।।4।।
अंतर दुश्मन दुष्ट हरामी, दुरे ते गत जामीजी;
‘ज्ञानविमल’ गुणनी प्रभुताई, सहज स्वभावे पामीजी… पार्श्व0।।5।।
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