पार्श्व प्रभुनां चरण नमीने…
(राग : हो प्रभुजी! मुज अवगुण…/अो साथी रे…/जिन! तेरे चरण की…)
पार्श्व प्रभुनां चरण नमीने, अरज करुं गुणखाणी;
मिथ्यादेवनी मूर्ति सेवी, साहिब तुम छो ज्ञानी,
हो प्रभुजी! एहवो हुं छुं अनाथी, साहिब! तुमे छो सोभागी… हो प्रभुजी!।।1।।
गीत अज्ञान नाटकमां हुं भमियो, कुगुरु तणा उपदेशे;
रंगभर रातोने मदभर मातो, भमियो देशविदेशे… हो प्रभुजी!।।2।।
जिनप्रासाद में जयणा न कीधी, जीवदयाथी हुं नाठो;
धर्म न जाण्यो में जिनजी तुमारो, हृदय कर्यो घणो काठो… हो प्रभुजी!।।3।।
परनिंदामांहे रहुं पूरो, पाप तणो छुं हुं वासी;
कहो साहिब! शी गति हमारी, धर्मस्थानक गया नाशी… हो प्रभुजी!।।4।।
त्रण भुवनमां भमतां भमतां, कोईए भाल न बतावी;
महादातार जिनेश्वर मोटा, महेर विपुलना वासी… हो प्रभुजी!।।5।।
कोई एक पुरव पुन्य संयोगे, अारजकुल अवतरियो;
पुण्य संयोगे जिनवर मलिया, भवना फेरा टलिया… हो प्रभुजी!।।6।।
ते माटे हुं अरज करीने, अाव्यो छुं दु:ख वासी;
मिथ्यादेवनी मूर्ति मूकी, चाकरी करुं तुम खासी… हो प्रभुजी!।।7।।
वामादेवीना नंदन सुणजो, अातम अरज अमारी;
मन मोह्युं जिनजी तुम साथे, तारी मूरति उपर जाउं वारी… हो प्रभुजी!।।8।।
‘उदयरत्ननो’ सेवक पभणे, मोक्ष मागुं गुणखाणी;
भवोभव तुम चरणोनी सेवा, एह उपर हुं रागी… हो प्रभुजी!।।9।।
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