प्रबल प्रभावे परगडो रे…

(राग : सकल समता सुरलतानो…/रंगरसिया रंगरस बन्यो मनमोहजी…)

प्रबल प्रभावे परगडो रे, पुरिसादाणी पास… भवियण! वंदो,
कामगवी सुरमणी परे रे, पूरे वंछित अाश… भवियण! वंदो,
वंदो वंदो रे सुजाण, भवियण! वंदो…!
वंदो वंदो श्री जिन पास, भवियण! वंदो…! प्रबल0।।1।।
नीलकमल दल परि भलो रे, दीपे तनु परकाश… भवि0;
हरखे नयण निरखतां रे, उपजे अधिक उल्लास… भवि0… प्रबल0।।2।।
निरखी निरखी हरखिये रे, साहिब सहज सनूर… भवि0;
तेज जलाहल झलहले रे, जाणे उग्यो सूर… भवि0… प्रबल0।।3।।
रत्नजडित विराजता रे, कुंडल सोहे सनूर… भवि0;
मानुं दोय सेवा करे रे, शशि रवि अावी हजूर… भवि0… प्रबल0।।4।।
मणिमयमुकुट मनोहरुं रे, सोहे शिर धर्यो सार… भवि0;
मानुं तारा परिवर्यो रे, चंद ए सेवागार… भवि0… प्रबल0।।5।।
सुंदर शिवरमणी वर्यो रे, परिवर्यो ज्ञान अनंत… भवि0;
चिदानंद जिनमूरति रे, अकलंकी अरहिंत… भवि0… प्रबल0।।6।।
कामित कामित पूरणो रे, पाप-तिमिर-भर भाण… भवि0;
‘नयविजय’ प्रभु दरिशणे रे, नितु नितु कोडी कल्याण…भवि0… प्रबल0।।7।।

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