प्रगटप्रभावी पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ जिनस्तुति अष्टक
(राग: मंदिर छाे मुक्तितणी…हरिगीत छंद)
सम्मेतशिखरे स्तम्भतीर्थे शिरपुरे भिलडीपुरे
नागेश्वरे कलिकुंडमां वीजापुरे पाटणपुरे
शंखेश्वरे जे शाेभतां आवी वस्या मारा उरे
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांग भावे हुं नमुं…………. १
जेना वंदनदर्शन थकी दुःखाे सकल दूरे टळे
जेना चरणवन्दनथकी मनवांछिताे सघळां फळे
जेना स्मरणपूजनथकी लक्ष्मी अमर आवी मळे
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. २
जेनुं करी नामस्मरण मुज मन प्रसन्न बनी रहे
जेनुं थतां दर्शन नयनथी हर्षजलधारा वहे
जेना चरणनाे स्पर्श पामी देह आ पुलकित बने
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ३
जेनी सरस मूर्ति उपर फणिधर मनाेहर शाेभताे
जेना हृदय पर परमसुंदर हार छे झगमग थताे
जेना चरण-कर पर मनाेरम पुष्पगुच्छ विराजताे
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ४
उपसर्ग करनाराे कमठ उपसर्ग हरनाराे धरण
बन्ने उपर करुणासुधा वरसावतां जेना नयन
जेना हृदयमां वही रह्युं वात्सल्यनुं पावन झरण
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ५
मूर्ति झशम पावनसुधा वरसावनारी जेमनी
वाणी हृदयवैराग्यसुख उपजावनारी जेमनी
आज्ञा परमशाश्वतपदे पहाेंचाडनारी जेमनी
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ६
धरणेन्द्र ने पद्मावती जेनी सदा सेवा करे
विजया जया अजिता अने अपराजिता जेने स्मरे
सवि यक्ष ग्रह दिक्पाल विद्यादेवी जेनुं शरण ले.
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ७
जेणे बचाव्याे बाळपणमां नाग बळताे आगथी
जेणे हण्याे भरयौवने महाकामनाग विरागथी
जेणे उगार्युं विश्वने दुःखद्वेषथी सुखरागथी
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ८
जेना प्रभावे जीवनमां हुं परमशान्ति अनुभवुं
जेना प्रभावे वरसमाधि मरणमां पामीश हुं
जेना प्रभावे पवनवेगे ‘माेक्ष’मां पहाेंचीश हुं
अेवा प्रभुश्रीपार्श्वने पंचांगभावे हुं नमुं………….. ९
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