प्राण थकी प्यारो मने…

(राग : बंधन… बंधन झंखे मारुं…/भक्ति की है रात…/सावन का महिना…)

प्राण थकी प्यारो मने, पुरिसादाणी पास रे;
अाव्यो तुज मुख देखवा, पूरो मुज मन अाश रे… प्राण0।।1।।
हवे मुज तुम मेलो थयो, नाव-नदी संयोग रे;
सेवक जाणी अापणो, दाखो नव-नव रंग रे… प्राण0।।2।।
में पल्लव पकड्यो खरो, दास छुं दीनदयाल रे;
नाठा ईम नवि छूटशो, सेवक जन प्रतिपाल रे… प्राण0।।3।।
निपट कांई करी रह्यां, अांख्यो अाडा कान रे;
सेवक समजी निवाजजो, कीजे अाप समान रे… प्राण0।।4।।
भाग्यवंत हुं जगतमां, निरख्यो तुम देदार रे;
‘मोहन’ कहे कवि रुपनो, जिनजी जगत अाधार रे… प्राण0।।5।।

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