राग. अजवाला देखाडो, अंतर द्वारा उघाडो…
Post by: arihant in Shri Parshwanath Stavan
जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं… जिन तेरे0
हृदयकमल मे ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं. जिन0 1
तुज सम खोल्यो देव खलक में, पेख्यो नहीं कबहुं. जिन0 2
तेरे गुण की जपुं जपमाला, अहनिश पाप दहुं. जिन0 3
मेरे मन की तुम सब जानो, क्यां मुख बहोत कहुं. जिन0 4
कहे ‘जसविजय’ करो त्युं साहिब, ज्युं भवदु:ख न लहुं. जिन0 5
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