राग- तमे तो अमारा रे पारसनाथजी

अबोलडां शानां लीधां छे राज,जीव जीवन प्रभु माहरा.
तमे अमारा अमे तमारा, वास निगोदमां रहेतां. अबोलडां. 1
काल अनंत स्नेही प्यारा, कदीय न अंतर करतां,
बादर स्थावरमां बेहुं आपण, काल असंख्य निगमतां. अबो0 2
विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्या नवि विसरतां,
नरक स्थाने रह्यां बेउं साथे, तिहां पण बहु दु:ख सहतां. अबो0 3
परमाधामी सनमुख आपण, टग टग नजरे जोतां,
देवना भवमां एक विमाने, देवना सुख अनुभवतां. अबो0 4
एकण पासे देवशय्यामां, थेई थेई नाटक सुणतां,
तिहां पण तमे अने अमे बेउ साथे, जिन जन्म महोत्सव करतां. अबो0 5
तिर्यंच गतिमां सुखदु:ख अनुभवतां, तिहां पण संगे चलतां,
एक दिन समवसरणमां आपण, जिनगुण अमृत पीतां. अबो0 6
एक दिन तमे अने अमे बेउ साथे, वेलडीए वलगीने फरतां,
एक दिन बालपणामां आपण, गेडी दडे नित्य रमतां. अबो0 7
तमे अने अमे बेउं सिद्ध स्वरूपी, एवी कथा नित्य करतां,
एक कुल एक गोत्र एक ठेकाणे, एक ज थालीमां जमतां. अबो0 8
एकदिन हुं ठाकोर तमे चाकर, सेवा माहरी करतां,
आज तो आप थया जग ठाकोर, सिद्धि वधूना पनोतां. अबो0 9
काल अनंतनो स्नेह विसारी, काम कीधां मनगमतां,
हवे अंतर केम कीधुं प्रभुजी, चौद राज जई पहोंतां. अबो0 10
‘दीपविजय’ कवि राज प्रभुजी, जगतारण जगनेता,
निज सेवकने यशपद दीजे, अनंत गुणी गुणवंता अबो0 11

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