समय समय सो वार संभारुं…

(राग : अाज मारा प्रभुजी!…/वीरजिणंद जगत…/मेरा नैना…/फूल तुम्हें भेजा…)

समय समय सो वार संभारुं, तुजशुं लगनी जोर रे;
मोहन मुजरो मानी लेजो, ज्युं जलधर प्रीति मोर रे… समय0।।1।।

माहरे तन धन जीवन तुं ही, एहमां जूठ न जाणो रे;
अंतरजामी जगजन नेता, तुं किहां नथी छानो रे… समय0।।2।।

जेणे तुजने हियडे नवि धार्यो, तास जनम कुण लेखे रे;
काचे राचे ते नर मूरख, रतनने दूर उवेखे रे… समय0।।3।।

सुरतरु छाया मूकी गहरी, बाउल तले कुण बेसे रे;
ताहरी अोलग लागे मीठी, किम छोडाय विशेषे रे… समय0।।4।।

वामानंदन पास प्रभुजी, अरजी चित्तमां अाणो रे;
रुपविबुधनो ‘मोहन’ पभणे, निज सेवक करी जाणो रे… समय0।।5।।

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