सार कर सार कर स्वामी शंखेश्वरा…

(राग : सांभलो कलश जिन…/जय गणेश जय गणेश देवा…)

सार कर सार कर स्वामी शंखेश्वरा, विश्व विख्यात एकांत अावो;
जगतना नाथ! मुज हाथ झाली करी, अाज किम काजमां वार लावो?… ।।1।।
हृदय मुज रंजणो शत्रु दु:ख भंजणो, इष्ट परमिष्ट मोहे तुंही साचो;
खलक खिजमत करे विपत्ति समे खिण भरे, नवि रहे तास अभिलाष काचो… ।।2।।
यादवा रणजणे राम केशव रणे, जाम लागी जरा निंद सोती;
स्वामी शंखेश्वरा चरण जल पामीने, यादवोनी जरा जाय रोती… ।।3।।
अाज जिनराज! उंघे किस्युं? अा समे, जाग महाराज! सेवक पनोता;
सुबुद्धि मले टले दूरित दोलत हरे, वीर-हाके रिपुवृंद रोता… ।।4।।
दास छुं जन्मनो पुरीये कामना, ध्यानथी मास दस दोय वीत्या;
विकट संकट हरो निकट नयणां करो, तो अमे शत्रु नृपतिकुं जीत्या… ।।5।।
कालमुखे अशन शीतकाले वसन, श्रम सुखासन रणे उदक दाई;
सुगुण नर सांभरे विसरे नहि कदा, पासजी! तुं सदा छे सखाई… ।।6।।
मात तुं! तात तुं! भ्रात तुं! देव तुं!, देव दुनियामां दूजो न वहालो;
श्री ‘शुभवीर’ जग जीत डंको करे, नाथजी! नेक नयणे निहालो… ।।7।।

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