शंखेश्वर पार्श्वजिन तारी…

(राग : सिद्धाचलना वासी…/ए मेरे वतन के लोगो…/अाणीशुद्धमन अासथा…)

शंखेश्वर पार्श्वजिन तारी, मूर्ति कामणगारी….!
मने लागे छे प्यारी, केवी ए चमत्कारी…!
तारा दरिशनथी भवदु:ख जाय रे……….. तारा दरशनथी0…. ।।1।।

शंखेश्वरमांहि तुंही बीराजे, महिमा तारो त्रिजगमांहे गाजे;
अाव्यो दर्शनने काजे, धन्य घडी धन्य अाजे रे… तारा0।।2।।

प्रतिमा सुंदर शोभे पुराणी, दामोदर जिन वारे भराणी;
केवी सुंदर लागे, नीरखतां भवदु:ख भागे रे… तारा0।।3।।

महा पुण्योदये तुं मलीयो, मारो भवनो फेरो टलीयो;
हवे छोडुं न तारुं ध्यान, हे करुणा-निधान रे… तारा0।।4।।

काल अनादि निगोदे हुं वसीयो, पुद्गलना संगे हुं रमीयो;
हवे कर तुं उद्धार, अातमना अाधार रे… तारा0।।5।।

विघ्न निवारण संकट चूरण, मनवांछितना छो तुमे पुरण;
बतलावो मुक्ति मिनार, जावुं भवने किनार रे… तारा0।।6।।

भवोभव तुम चरणोनी सेवा, मुजने अापो देवाधिदेवा;
तुं छे साचो मारो नाथ, शंखेश्वर पारसनाथ रे… तारा0।।7।।

वामा उर सरोवर हंस, अश्वसेन कुल अवतंस;
दूरथी अाव्यो तारी पास, पूरजो ‘हर्षनी’ अाश रे… तारा0।।8।।

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