शरण तुमारे अायो जिणंदराय…

(राग : जिन! तेरे चरण की…/मुज अवगुण मत देखो…/अब मोहे…)

शरण तुमारे अायो जिणंदराय! शरण तुमारे अायो;
पकडी जकडी मोह महाराये, चिहुं गति चोक फिरायो… जिणंदराय!
नरक निगोदने बंदीखाने, काल अनंत रझळायो;
पाया अतिमहामदना प्याला, बहु विपरीत भमायो… जिणंद0।।1।।
मोहतणी राणी महामूढता, तेणे हुं धंधे लगायो;
छाई रह्यां मुज अांतर लोचन, अापकुं अाप भूलायो… जिणंद0।।2।।
महा मंत्रीश्वर मोहराय को, मिथ्यादर्शन कहायो;
कुदेव कुगुरु कुधर्मनी संगे, सूध बुध सघली हरायो… जिणंद0।।3।।
नाना वेश भेख पाखंडे, मर्कट नाच नचायो;
विपर्यास अासन पर मंडप, चित्त विक्षेप रचायो… जिणंद0।।4।।
सुणो अरदास समर्थ पार्श्व प्रभु!, पंचासर सुखदायो;
अंतरंग रिपु भय सवि नाठो, जो ‘विनये’ प्रभु ध्यायो… जिणंद0।।5।।

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