श्री चिंतामणि प्रभु पार्श्वजी…
(राग : अब सौंप दिया इस जीवन को…)
श्री चिंतामणि प्रभु पार्श्वजी!, दादा वात सुणो एक मोरी रे;
मारा मनना मनोरथ पूरजो, हुं तो भक्ति न छोडुं तोरी रे… श्री…।।1।।
माहरी खिजमतमां खामी नहि, ताहरे खोट न कांई खजाने रे;
हवे देवानी शी ढील छे?, कहेवुं ते कहीए थाने रे… श्री…।।2।।
ते उरण सवि पृथ्वी करी, धन वरसी वरसीदाने रे;
माहरी वेला शुं एहवा, दीअो वांछित वालो वानो रे… श्री…।।3।।
हुं तो केड न छोडुं ताहरी, अाप्या विण शिवसुख स्वामी रे;
मूरख ते अोछे मानशे, चिंतामणि करतल पामी रे… श्री…।।4।।
मत कहेशो तुज कर्मे नथी, कर्मे छे तो तुं पाम्यो रे;
मुज सरीखा कीधा मोटका, कहो तेणे कांई तुज थाम्यो रे… श्री…।।5।।
काल स्वभाव भवितव्यता, ते सघला तारा दासो रे;
मुख्य हेतु तुं मोक्षनो, ए मुजने सबल विश्वासो रे… श्री…।।6।।
अमे भक्ते मुक्तिने खेंचशुं, जिम लोहने चमक पाषाणो रे;
तुमे हेजे हसीने देखशो, कहेशो सेवक छे सपराणो रे… श्री…।।7।।
भक्ते अाराध्या फल दीये, चिंतामणि पण पाषाणो रे;
वली अधिकुं कांई कहावशो, ए भद्रक भक्ति ते जाणो रे… श्री…।।8।।
बालक ते जिम तिम बोलतो, करे लाड तातनी अागे रे;
ते तेहशुं वांछित पूरवे, बनी अावे सघलुं रागे रे… श्री…।।9।।
मारे बननारुं ते बन्युं ज छे, हुं तो लोकने वात शिखावुं रे;
‘वाचक जश’ कहे साहिबा!, ए रीते तुम गुण गावुं रे… श्री…।।10।।
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