श्री शंखेश्वर प्रभु पास…

(राग : यह है पावन भूमि…)

श्री शंखेश्वर प्रभु पास, मारी विनंती मानो खास,
करो मुज हैयामां वास, मने दरिसण द्यो एक वार… श्री शंखेश्वर0।।1।।

तारी मूर्ति मोहनगारी, सहु कोईना दिल हरनारी,
तारो महिमा अपरंपार, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।2।।

तारी सुरतरु जेवी छाया, छे पुनित तारी काया,
मने ना गमे बीजानी माया, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।3।।

हुं रागी तुं छे निरागी, तारा दरिसणनी लगनी लागी,
मारा भवनी भावठ भांगी, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।4।।

प्रभु! एक वात मारी मानो, तारी पासे छे गुणनो खजानो,
मने अापो तो नहि खुटवानो, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।5।।

तारी अांगी अनुपम चमके, कांई जगमग जगमग झलके,
निरखीने हैयुं हरखे, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।6।।

तुं मारो अंतरयामी, भवोभव मुज होजो स्वामी,
तने प्रणमुं छुं शिरनामी, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।7।।

दूर दूरथी यात्रिको अावे, भक्ति भावे गुण तारा गावे,
सम्यग् दर्शन पद पावे, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।8।।

तारा दरिसननी बलिहारी, अमने लियो भवथी उगारी,
कहे ‘पद्मविजय’ सुखकारी, मने दरिसण… श्री शंखेश्वर0।।9।।

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