तुं अकलंकी शुद्ध सरूपी, परमानंद पद तुं दाइ
Post by: arihant in Shri Parshwanath Stavan
तुं शंकर ब्रह्मा जगदीश्वर, वीतराग तुं निरमाइ….. तुं-१
अनाेपम रूप देखी तुज रीझे, सुर नरनारी के वृंदा
नमाे निरंजन फणीपति सेवित, पास गाेडीया सुर कंदा….. तुं-२
काने कुंडल शिर छत्र बिराजे, चक्षु टीका निरधारी,
हस्त बीजाेरूं हाथ साेहिअे, तुम वंदे सहु नरनारी….. तुं-३
अग्नि काष्टसें सर्प निकाल्या, मंत्र सुनाया बहु भारी,
पूर्व जन्मका वैर खाेलाया, जळ बरसाया शिरधारी….. तुं-४
जळ आवी प्रभुनाके अडीया, आसन कंप्या निरधारी
नागनागणी छत्र धरे छे, पूर्व जन्मका उपकारी….. तुं-५
रूपविजय कहे सुण मेरी लावणी, अेसी शाेभा बहु सारी,
मातपिता बंधव सहु साथे, संजम लीधा निरधारी….. तुं-६
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