तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो
Post by: arihant in Shri Parshwanath Stavan
तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो, क्षण अेक मुजने नाहि विसारो;
महेर करी मुज विनंती स्वीकारो, स्वामी सेवक जाणी नीहाळो। तुं प्रभु01
लाख चोराशी भटकी प्रभुजी, अाव्यो हुं तारे शरणे जिनजी;
दुरगति कापो शिवसुख अापो, भक्त-सेवकने निज पद स्थापो। तुं प्रभु0 2
अक्षय खजानो प्रभु तारो भर्यो छे, अापो कृपालु में हाथ धर्यो छे;
वामानंदन जगवंदन प्यारो, देव अनेरा मांहे तुं न्यारो। तुं प्रभु0 3
पल पल समरुं नाथ शंखेर्श्वर, समरथ तारण तुं हि जिनेर्श्वर;
प्राण थकी तुं अधिको वहालो, दया करी मुजने नेह निहाळो। तुं प्रभु0 4
भक्त वत्सल तारुं बिरूद वाणी, केड न छोडुं अमे लेजो जाणी;
चरणोनी सेवा नित नित चाहुं, घडी घडी मनमांहे उमाहुं। तुं प्रभु0 5
”ज्ञानविमल” तुज भक्ति प्रभावे, भवोभवनां संताप शमावे;
अमीय भरेली तारी मूरति निहाळी, पाप अंतरना देजो पखाळी। तुं प्रभु0 6
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