श्री शंखेश्वर पार्श्वप्रभु समरुं

श्री शंखेश्वर पार्श्वप्रभु समरुं, अरिहंत अनंत नुं ध्यान धरुं;
जिणागम अमृत पान करुं, शासनदेवी सवि विध्न हरुं.
(यह स्तुति चार बार बोली जा सकती है।)
र्ीं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ वंदनावली र्ीं
जेना स्मरणथी जीवनना संकट बधा दूर टले,
जेना स्मरणथी मनतणां वांछित सहु आवी मले,
जेना स्मरणथी आधि व्याधि ने उपाधि न टके,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना चरणोमां प्रेमे नमुं ॥1॥
विघ्नो तणा वादल भले, चोमेर घेराई जतां,
आपत्तिना कंटक भले, चोमेर वेराई जतां,
विश्वास छे जस नामथी, ए दूर फेंकाई जतां. एवा. ॥2॥
त्रण कालमां त्रण भुवनमां, विख्यात महिमा जेहनो,
अद्भुत छे देदार जेहना, दर्शनीय आ देहनो,
लाखों करोडो सूर्य पण, जस आगले झांखा पडे एवा. ॥3॥
धरणेन्द्र पद्मावती, जेनी सदा सेवा करे,
भक्तो तणा वांछित सघला, भक्तिथी पूरा करे,
इन्द्रो नरेन्द्रो ने मुनीन्द्रो, जाप करतां जेहनो एवा. ॥4॥
जेना प्रभावे जगतना, जीवो बधा सुख पामतां,
जेना न्हवणथी जादवोना, रोग दूरे भागतां
जेना चरणना स्पर्शने, निशदिन भक्तो झंखतां एवा. ॥5॥
बे काने कुंडल जेहना, माथे मुगट बिराजतो,
आंखो महि करुणा अने, निज हैये हार विराजतो,
दर्शन प्रभुनुं पामी मननो, मोरलो मुज नाचतो एवा. ॥6॥
ॐ ह्रीँ पदोने जोडीने, शंखेश्वराने जे जपे,
धरणेन्द्र पद्मावती सहित, शंखेश्वराने जे जपे,
जन्मो जनमना पापने, सहु अन्तरायो जस तुटे एवा. ॥7॥
कलिकालमां हाजराहजूर, देवो तणाये देव जे,
भक्तो तणी भव भावठोने, भांगनारा देव जे,
‘मुक्तिकिरण‘ नी ज्योतने, प्रगटावनारा देव जे एवा. ॥8॥
प्रगटप्रभावी नाम तारुं, नाथ साचुं होय जो,
कलिकालमां मुजने प्रभुजी, मुक्ति सुख देखाड तो,
तुज नाम सत्य ठरे ज छे, मुज आतम आनंद तो,
‘प्रगटप्रभावी‘ प्रभु पार्श्वने भावे करुं हुँ वंदना एवा. ॥9॥
जे प्रभुना दर्शनथी सहु आपदा दूरे थती,
ने जे प्रभुना स्पर्शथी, लहु सम्पदाओ मली जती,
विघ्नो हरी शिवमार्गना, जे मुक्ति सुखने आपतां,
‘विघ्नहरा‘ पार्श्वनाथने भावे करुं हुँ वन्दना एवा. ॥10॥
जेना गुणोने वर्णवा, श्रुतसागरो ओछा पडे,
गंभीरताने मापवा सहु, सागरो पाछा पडे,
जेनी धवलता आगले, क्षीरसागरो झांखा पडे,
‘शंखेश्वरा‘ प्रभु पार्श्वने भावे करुं हुँ वन्दना एवा. ॥11॥
जेना वदननुं तेज निरखी, सूर्य आकाशे भमे,
वली नेत्रना शुभ पीयूष पामी, चन्द्र निशाएँ झगे,
जेनी कृपादृष्टि थकी आ, वादलाओ वरसता एवा. ॥12॥
अतीत चोवीशी तणा, नवमां दामोदर प्रभु,
अषाढी श्रावक पूछतां, को माहरा तारक प्रभु,
त्यां जाणतां प्रभु पार्श्वने, प्रतिमा भरावीने पूजतां एवा. ॥13॥
सौधर्म कल्पादि विमाने, पूज्यता जेनी रही,
वली सूर्य चन्द्र विमानमां, पूजा थई जेनी सही,
ने नागलोके नाथ बनीने, शान्ति सुखने अर्पता एवा. ॥14॥
आ लोकमां आ कालमां, पूजाय आदिकालथी,
वली नमी विनमी विद्याधरो, जेने सेवे बहुमानथी,
त्यांथी धरणपति लई प्रभुने, निजभवन पधरावतां एवा. ॥15॥
जरासंघनी विद्या जरा, ज्यां जादवोने घेरती,
नेमिप्रभु उपदेशथी श्री कृष्ण अट्ठमने तपी,
पद्मावती बहुमानथी, प्रभु पार्श्वप्रतिमा आपती एवा. ॥16॥
जेना न्हवणथी जादवोनी, जरा दूरे भागती,
शंखध्वनि करी स्थापना त्यां, पार्श्वनी प्रतिमा खरी,
जेना प्रभावे नृपगणोना, रोग सहु दूरे थतां एवा. ॥17॥
जेना स्मरणथी भाविकना, इच्छित कार्यो सिद्धता,
जेना नामथी पण विषधरोना, विष अमृत बनी जतां,
जेना पूजनथी पापियोना, पाप ताप शमी जतां एवा. ॥18॥
ज्यां कामधेनु कामघटने, सुरतरु पाछा पडे,
चिंतामणि पारसमणिना, तेज ज्यां झांखा पडे,
मणि मंत्र तंत्रने यंत्र जेना, नामथी फल आपतां एवा. ॥19॥
संसारगर्तमां पडेला, जीवोना रक्षणहार जे,
संसारसागरमां खूंचेला, जीवोना तारणहार जे,
शंखेशपुर माणेक समा, जे नाथ जगना शोभतां,
एवा श्री शंखेश्वर प्रभुना, चरणोमां प्रेमे नमुं,
मारा प्रभु पार्श्वनाथने, भावे करुं हुंँ वंदना एवा. ॥20॥

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